लोर/ डॉ॰ राम सेवक ‘विकल’

Image

लोर/ डॉ॰ राम सेवक ‘विकल’

बहेला नयनवाँ से लोर, दरद उठे मोर,
कि पिया मोरे आ जा ना ।
मँह मँह मँहकेला बाग-बगइचा,
भँवरा करेला गुंजार,
भँवरा भँवरिया की मस्ती में मातल,
लूटे तितिलिया बहार ।
आइल जिनगिया में भोर, जवनियाँ में जोर,
कि पिया मोरे आ जा ना ।
चारू ओर छाइल बा मद के खुमारी
बहे पुरवइया बयार 1
उमड़ेले मन में पिरितिया के नदिया
भरली लहरिया फुहार ।
सखिया मचावेली शोर, जलावे मन मोर,
कि पिया मोरे आ जा ना ।
तोहरा सनेहिया में जिनगी जलवलीं
सुसुकत भइलीं उदास,
अपने छिपेल पिया चाँद ओ सुरूजवा में,
हमके न देलऽ परकास ।
छाइल घटा घनघोर, बिरह करे जोर,
कि पिया मोरे आ जा ना ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोर/ डॉ॰ राम सेवक ‘विकल’ - भोजपुरी मंथन