अबकी बार लतिआवल जइब/ ब्रज मोहन राय ‘देहाती’
अबकी बार लतियावल जइब,
गंगा में धकियावल जइब,
संसद से घेंटियावल जइब,
हाजत में सँठियावल जइब ।
खूब बढ़वल दाढ़ी-मोछ,
हनुमान अस लमहर पोंछ,
कइल ना जनता के सोच,
चलते ठेहुन आइल मोच,
सोंचला पर घटियावल जइब ।
लूट डकइती मारा-मारी,
धाका – धुक्की, खइल घूस,
केहू कहल हईं अमेरिकन,
केहू बोलल हमरे रूस,
अबना तू पटियावल जइब ।
जनता मुर्गा होय हलाल,
विलरा के बा खूब कमाल,
गिरहबाज के पासा पलटी,
जब जनता के माथा उलटी,
उल्टे खीर खियावल जइब ।