असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया – आकाश महेशपुरी

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असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया – आकाश महेशपुरी

जन्म लेते पूत के उछाह से भरेला हिय,

गज भर होइ जाला फूलि के ई छतिया।

पाल-पोस के बड़ा करेला लोग पूत के आ,

नीमने से नीमने धरावे इसकुलिया।

होखते बियाह माई-बाप के बिसार देला,

तबो माई-बाप दें आषीश दिन-रतिया।

त्याग दिन-रात कइलो प नाहीं सुख मिले,

असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया।।१।।

तनिको बीमारी होखे बेटा चाहें बेटी के तऽ,

छोड़े नाहीं माई-बाप एको डाकटरिया।

कवनो उधम क के रुपिया लगावे लोग,

देखे नाहीं रात बा कि जेठ दुपहरिया।

उहे माई-बाप जब खाँस देला सुतला में,

चार बात कहे रोज बेटवा, पतोहिया।

तनिको शरम नाहीं बाटे आज अँखिया में,

असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया।।२।।

बा जेके संतान कई उहो परेशान इहाँ,

झगरा आ मार रोज छीन लेला निंदिया।

केनहो से बोले बाप मिले अपमान बस,

नेकी सब जिनिगी के मिल जाला मटिया।

अपने कुटुंब बाण मार देला छतिया पऽ,

कष्ट भोगे बूढ़ लोग भीष्म जी के तरिया।

कटेला अकेले रात खेत खरिहान बीच,

असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया।।३।।

घर-परिवार बदे कर्म लगातार करे,

देखे नाहीं घाम-शीत बहरी भीतरिया।

उहे जब देहि से बा तनी कमजोर होत,

फेर लेत बाटे लोग कइसे नजरिया।

वृद्ध आसरम बा खुलल चहुँओर आज,

उहँवें भेजात कुछ घर के पुरनिया।

बूढ़ माई-बाप आज फालतू सामान लगें,

असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया।।४।।

खबर छपल रहे एक अखबार में कि,

बेटा आ पतोहि करें बाहर नोकरिया।

बाप-महतारी के बा लाश घर में परल,

देखल समाज जब खोलल केवड़िया।

काहें पद पावते ऊ माई बाप छुटि जात,

जेकरे करम से बा चमकल भगिया।

मरतो समय नाहीं केहू आस-पास रहे,

असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया।।५।।

अँगुरी धराई के सिखावे माई-बाप जे के,

उहे बड़ होखे तऽ सुनेला नाहीं बतिया।

सगरी बला से जे बचावे उजवास क के,

ओकरे धोवात नाहीं चादर आ तकिया।

घर परिवार बदे रोशनी बनल रहे,

उहे आजु सिसिकेला कोठरी अन्हरिया।

कई गो बीमारी ले के दिनवा गिनत रहे,

असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया।।६।।

गतरे गतर देहि बथेला कपार पीठ,

हो के मजबूर लोग धइ लेला खटिया।

उम्र बढ़ि जाला जब हद से मनुज के तऽ,

साँच बाति हवे मंद पड़ि जाला मतिया।

अट पट बाति जब निकलेला मुँह से तऽ,

लइका के छोड़ऽ तब डाटि देला नतिया।

मनवा मसोसि मने-मन दुख सहि जात,

असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया।।७।।

जेकरा गुमान बाटे अपना जवनिया पऽ,

एक दिन ढल जाई ओकरो उमिरिया।

मान आज नाहीं देत बाटे जे पुरनिया के,

मान नाहीं पाई उहो झुकते कमरिया।

बहुते जरूरी बाटे नीक परिवार होखो,

एक दूसरा से रहे गहिर सनेहिया।

बाकिर समाज जब देखीले तऽ प्रश्न उठे,

असहिं का वृद्ध लो के होई दुरगतिया।।८।।

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