आगि कहीं दहकल / भोलानाथ गहमरी

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आगि कहीं दहकल / भोलानाथ गहमरी

ताड़ पर से उतरल
खजूरे पर अँटकल
सपना के जंगल में
आगि कहीं दहमल। सपना…
जिनिगी के पोखरा में
रोज पड़ल जाल,
बाहर से भीतर बा
गरई के हाल,
कीचड़ में रात-दिन
जियरा बा सउनल। सपना…
सोन्ह-सोन्ह चिखना पर
गरम-गरम रस,
उनकर तकदीरे के
रेखा बा ठस,
हमरा त माथे
तलवार बाटे लटकल। सपना…
रोज-रोज कुआँ त
रोज-रोज पानी,
पी-पी के जीयत बा
घर के परानी,
दुनियाँ के डहली पर
पाँव नाहीं बहकल। सपना…

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आगि कहीं दहकल / भोलानाथ गहमरी – भोजपुरी मंथन