आगी / डॉ॰ गोरख प्रसाद ‘मस्ताना’

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आगी / डॉ॰ गोरख प्रसाद ‘मस्ताना’

हमरा के मत राखी समझीं, हम भोजपुरिया आग हईं ।
नीमन ला नीमन बानी, बाउर ला विखधर नाग हईं ।

हमर हिया नेहिया के गगरी
प्रेम पीरित छलकावे
आँख चढ़ा के देखवइया के
मटिया मेट मिलावे

जे सोचे देशवा के बाँटब, उनका ला दुरभाग हईं ।
हम गाँधी बाबा के चेला
गीत दया के गाई ला
माँगेलीं जब भारत माता
विहँसीं शीश चढ़ाइला

कबहूँ सूरज दुपहरिया के, कबहू राग बिहाग हईं ।
हमरा एक दहाड़े छाती
दुश्मन के थहरा जाला
एक चोट से घुसपैठी के
दाँत कुल्ही भहरा जाला

हम हीं, हिन्द महासागर के हहरत घहरत झाग हईं ।
हमर सिधाई के कमजोरी
बुझीं से मुँह की खाईं
सात पुस्त नरके में रहिहें
कहियो ना पनके पाई
हम त अर्जुन के धनुष आ, उनहीं के अनुभाग हईं

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आगी / डॉ॰ गोरख प्रसाद ‘मस्ताना’ - भोजपुरी मंथन