आज के प्रवेश में शरद ऋतु/ विवेक सिंह
मन कोमल भइल, तन ठिठुराइल बा
शरद ऋतु जब से आईल बा !! !!
फुहार बन के गिरे ओश
रवि भी सीत से नहाइल बा !! !!
देख मन ह्रसित भइल अलगु के
समय के प्रवेश में ओकरा पास
भी अब रजाई बा !! !!
बदलल समाज के रित अब
सब समय के दोहाई बा !! !!
अरे अब केकरा लगे पुआल
के चटाई बा !! !!
मन कोमल भइल, ……………
शरद ऋतु जब …………….. !! !!
बितल याद से, आनंद छाए मन के
हर केहु के दुवार पे, कऊर लागत रहे ज़म के !! !!
बुजूर्ग होखे या जवान, अब कहा बा
लाज-शर्म-प्रेम के नाम !! !!
सब कोई सोवार्थ में समाइल बा
मौबाइल लेके रजाई में लूकाइल बा !! !!
बदलाव नियम त मजबुरी ह
पुरखन से मिलल सभ्यता रखल ज़रूरी ह !! !!
अब कहा इक्षा में जान बा
कहा केहु बुजूर्ग से लेत ग्यान बा !! !!
गाव से ही ज़िन्दा ई आपन देश बा
ईहे सभ्यता अ प्रतिष्ठा बचल अब शेष बा !! !!
मन कोमल भइल. …………….
शरद ऋतु जब से. ………………!! !!