ई बता दऽ भइया / कनक किशोर
गीत कवित हम का जानीं भइया
पानी बिनु बे पानी
जल, जंगल, जमीन से बेदखल
खोजत बानीं पानी
कहँवा गइल नदी सरोवर ?
ई बता दऽ भइया।
राज – पाट जेहि हाथ के दिहनीं
लूटे दूनों हाथे
पक्ष – विपक्ष अब रहल कहाँ जी
सब कुर्सी के साथे
कहँवा गइल सिद्धांत नीति ?
ई बता दऽ भइया।
धुरी विकास के तेजी से दउड़त
छिनि हाथ रोजगार
करजा लेके घीव पियत बा देश
घरे आ बइठल बाजार
कहँवा गइल लोक के नीति ?
ई बात दऽ भइया।
अन्न, पानी, दवाई सब महँगा
रोज नया बीमारी
सत्ता-सेठ के मेलजोल करत बा
लूटे के तैयारी
कहँवा गइल प्रतिरोधी क्षमता ?
ई बात दऽ भइया।
वादा रखऽ तू अपने पास में
ना गारंटी चाहीं
पेटवा के चाहीं रोटी भाई जी
हाथ के कमवा चाहीं
कहँवा गइल सुशासन वादा ?
ई बता दऽ भइया।