ऊसर हो गइल/ डॉ॰ राजनारायण दीक्षित
मटियार मटिया अब ऊसर हो गइल,
रहे लहलहात जवन पीयर हो गइल ।
पेयार के धार जहाँ रहे बहत,
अब झाड़ बालू के दीयर हो गइल ।
धारा के धकिया के बनल लहर जवन,
काल्हे रहे गाँव, आज ऊ सहर हो गइल ।
काल के हाल कहाँ केहू जानेला,
साँझ के रहे महल, सुबह खंडहर हो गइल ।
दिली तमन्ना रहे, दिल्ली सरताज बनी
अखण्ड भारत खातिर जिन्ना जहर हो गइल ।