कइके जतन दबा देहीं / आनन्द सन्धिदूत
हरफे-हरफे काजर-टीका अंग-अंग नोक्ता देहीं।
हमरो एगो शे’र समय का पहिया पर लिखवा देहीं।
हम का लिखीं बसीयत हमरा आव-जाव हइये ना
बा खाली बदनामी ओके गंगा में सेरवा देहीं।
चाहीं इहे पसर भर भोजन, सूतत बेर पहर भर ठौर
एतनो नाहीं मिली त आगे चाहे जवन सजा देहीं।
पढ़ला पर सत्ता के कहनी दुनियाँ समझ में आइल ना
ओह कहनी में अपनो कहनी हीरा अस जड़वा देहीं।
रोवत-हँसत अतीत देख के चक्कर आइल गिर पड़लीं
हमरो आँखी कोल्हू पशु के नजरबन्द चढ़वा देहीं।