कर बर भगती मानव तन पाके / भगती दास
कर बर भगती मानव तन पाके।।
दाल निर्हले, भात निर्हले हदर्दी लगा के, चौका भीतर मुरदा निरहले खात बारे सराह के।।
मातपिता से करुआ बोले, मेहरी से हरखा के, पड़ जइबे नरक का घेरा, मू जइबे पछता के।।
कहीले भगतीदासजी बहुत तरह समझा के, मारेलगिहें जमुइया, तबरोए लगबे मुँह बा के।।