काँटे मिलल/ सत्यनारायण सिंह
फुलबगिया में हमरा त काँटे मिलल
दोसरे केहू लोदल रहे जे खिलल
मन के दुखड़ा सुनवनीं हरेक पात से
नीरमोहिया ठठा के हँसल आ गिरल
बात टुटही मड़इया के का हम कहीं
मुँह कतनो खोलवनीं खोले ना सियल
अन्न हमरे बदे भइले सगरे महँग
हर डगर राह पर देखनी हाँ डिलल
हम नगर पर नगर के बसावत रहीं
अब कठिन हो गइल बाटे हमरे जियल
चिट्ठी बाँचे में सिर में दरद हो गइल
खुदे पढ़ के सुनइहें ऊ आपन लिखल