जय-जय सब भारतवासी के | संग्राम ओझा “भावेश”

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जय-जय सब भारतवासी के | संग्राम ओझा “भावेश”

सभ्यता संस्कृति के देश रहे,अब त कुछु अउरे शुरु भइले,
सोने के चिडीयाँ भी उड़ गइल,ना जाने कहाँ विश्वगुरु गइले,
लोक लाज के भुल गइल सभे,पश्चिम सभ्यता अपनावता,
फैशन में फाटल कपड़ा पहिन के,आधा देही देखावता,
सब जान के जहर पिये सबहीं,इहाँ रुप लेला अविनाषी के,
जय जय भारत-जय जय भारत,जय जय सब भारतवासी के –१

राजनिति के बिहड़ रुप,जन मानस के झकझोरत बा,
चोर,लुटेरा,साधु,सन्त ई केहु के ना छोड़त बा,
शासक होला बढ़ीयाँ जब,विकास होला सम्राज्य के,
चाहें विरोधी निमन होखे त,काम करावेला ताज से,
राज्य देश के छोड़ ,माया से फरका जे धुनि रमावेला,
मोक्ष के खातिर जग छोड़ेला,अपनो घर ना आवेला,
बाकिर आज सब उल्टा बा,सत्ता मिले साधु-सन्यासी के,
जय जय भारत-जय जय भारत,जय जय सब भारतवासी के –२

बिगडल नइखे अबहीं कुछ,अबहूँ से चली सुधार होखो,
जेतना देश में भरल बुराई,पहिले ओह पर वार होखो,
देश के बाद में छोड़ी ,पहीले अपना पर विचार होखो,
रउरा सुधरब त देश सुधरी,सब ऐकरा ला तइयार होखो,
प्यार से काम चलाई त,जरूरत पड़ी ना ‘संग्राम’ फाँसी के,
जय जय भारत-जय जय भारत,जय जय सब भारतवासी के –३

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