जीवन यात्रा/ जगदीश नारायण सिंह ‘ऋषिवंशी’
अइलै माया की नगरिया, रोवत क बचवा ।
तजलै माई क ओझरिया चलत क बचवा ।।
नव माह तक गरभ में रहलै फिर धरती पर अइलै ।
माया क हावा लगते ही सारा ज्ञान भुलइलै ।।
फिर भी खुलल ना नजरिया रोवत क बचवा ।
अइलै माया की नगरिया, रोवत क बचवा ।।
जवने घर में जनम भयल उस घर में बजल बधाई ।
गांव पड़ोसी खुशी से नाचत तोहरे छुटत रोवाई ।।
एइसन अइले के पहरिया रोवत क बचवा !
अइलै माया की नगरिया, रोवत क बचवा ।।
जीवनभर तू मौज उड़वलै आयल चले क बेला ।
सकल कमाइ छुटही जाई, जाई नही अधेला ।।
सूनी रही सब डगरिया रोवत क बचवा |
अइलै माया की नगरिया, रोवत क बचवा ।।
मुट्ठी बाध के आयल रहलै, हाथ पसारे जइवै ।
बाधके मुह जगदीश तू जइवै बाकी सभै रोवइबै ।।
लूट जाई सब बजरिया रोवत क बचवा ।
अइलै माया की नगरिया, रोवत क बचवा ।।