जेकरा से आस रहे/ विद्या शंकर विद्यार्थी
जेकरा से आस रहे बाप के करतूत ना ढोई
उहो अब तऽ ओही राह पर दर के चलता
जमाना के आँख में धूर झोंकला प लिख लेला
तसल्ली एतने बा कि जमाना सांच उगीलता
हिसाब अनहकी के सब इहंँवे हो जाई सुनलीं
समय अबहीं भुलावा देता आ खइनी मलता
हम भरोसा कइले बानीं कि समय साथ दिही
लउकता सदेह धूप तम के फार के निकलता।