डाह बा – नूरैन अंसारी

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डाह बा – नूरैन अंसारी

जेने देखीं वोने,बस जलन बा डाह बा!!
गावं समाज के, इ घाव गहिराह बा!!

आपन त चलत बा, कौनो लाखन खींच-खाँच के,
बाकिर दोसरा के चक्क्रर में लोग तबाह बा!!

कोहर के बोली त ,लोग के लागेला निक,
आ खुल के हंस दिहल, बड़का गुनाह बा!!

साँच के चिरुआ भर, पानी बा दुर्लभ,
आ झूठ के घरे देखीं, धन अथाह बा!!

सोझबक के घर बाहर केहू ना पूछेला,
आ लंगा के चारू ओर खूबे बाह बाह बा!!

जले चलत बा जांगड़ सब लोग हित-नात बा,
आ थकला पर नाही कही, कौनो पनाह बा!!

मुंह मारी राउर, बड़का कोठा अमारी के,
एहिमे केतना ग़रीबवन के तड़प बा आह बा!!

बरतिया का जानी,उबरल खाना के मरम,
पूँछी ओकरा से, जेकरा घरे बियाह बा!!

देखावा में जिनगी के दशा भईल अईसन,
की मीठा बा सेर भर आ बड़का कड़ाह बा!!

“नूरैन” जले चलत बा एक में,घर चलावत रहीं,
अलगा भईला में भाई हो सबकर मुवाह बा!!

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डाह बा – नूरैन अंसारी - भोजपुरी मंथन