दाल भात चली रात के…/ सुजीत सिंह
माड़ो मटकोर गीत बेटी के बारात के,
काथा पूजा होई दाल भात चली रात के।
दुअरा पर भीरल हलुआई काम करताटे,
रखल बा डराम लइका पानी ओमे भरताटे।
जे बा से बेयस्त समय नइखे मुलाक़ात के,
काथा पूजा होइ दाल भात चली रात के।
डगरिन कहेली नेग मानर के पुजाइ चाहीं,
कहता बहिन सोना माटी के कोराइ चाहीं।
इहे बाटे रसम सगरो गाँव आ देहात के,
काथा पूजा होइ दाल भात चली रात के।