नदी के किनारा / सत्यनारायण सिंह
जब-जब डूबेला नदी के किनारा
पानी बहेला कि जइसे आबारा।।
खोजले मिलेला ना जिनगी भुलाइल
हरियर ना होखेला, फुलंगी सुखाइल
गरदिस में लउके ना जइसे सितारा।।
जागेला लहरन के मन में जब प्रीत
ज्ञानी पराशर भी भूल जाले रीत
पगल बना देला जइसे इसरा।।
लगेला जइसे कि वंशी टेराइल
देह भइल गोकुल आ सुधिया हेराइल
हहरावे हियरा के जमुना के धारा।।
सँसरेला पनघट पर झीनी चुनरिया
माथा से गिर जाला बाँकी पगरिया,
छलकत गगरिया में झलके इनारा।।
गरमी सहेला ना भादो के बादर
नजर ना लागे दे आँखिन के काजर
लहर से ढ़ह जाला जइसे दियारा।।