नेता/ आचार्य महेंद्र शास्त्री
बाबू कैसन तहार हवे मनवाँ
का कबहुँ ना होई इमनवाँ ?
कूदल फनल वन गइल नेता
तन मन धन सब लोगवा देता
आपन चलवल दुकनवां ।
तहरे के त्यागी तहरे के ज्ञानी
दूर दूर के केना जानी ?
जानेल ऐसने फनवाँ ।
जे लाचार से ही ही शिकार
जे बरिआर ओकर सुतार
ई हे चलवल चलनवाँ ।
हौअ तूं सांप बनेल माला
ए ही से सबकेहू धोखा खाला
आपन बढ़ावेल घनवाँ ।