पकवा इनार/ नीरज सिंह
पकवा इनार प के खेत
हमरा परिवार के शान रहे ।
बाबा कहत रहन हमरा से
लड़िकाईं में
जानत बाड़ऽ बबुआ
सिपाही के नोकरी से
रिटायर अइनी त
सब जमापूंजी
लगाके किनले रहीं इहे
डेढ़ बिगहवा खेत ।
किनले रहीं इ बरियार नाभ धरती
आ हल्ला भ गइल रहे
चारो ओरिया गांव-जवार में
‘बड़ नू कमाई क के पिनसिन आइल बा
ईश्वरसिंघवा !
बड़का घरायन के लोग
देखते रह गइल आ
लिखवा लेलस पराहुत राय के
डेढ़ बिगहवा पकवा इनार।
एकरे के कहल जाला मरदाही रे भाई ।’
बाबा मुअलन आ
तीसरे साले नू रेहन धरा गइल डेढ़ बिगहवा !
धराइल रहे दिन दिदिया के
बियाह के
आ ओने बलेसर काका
कोड़ मरलन भोरे भोरे दुआर -’
तनिको घबड़इह जन भतीजा !
जइसे हिम्मत करके ठीक कइले बाड़ऽ
राजा घरे बेटी के बियाह
तसहीं करेजा चीर के देखा देबे के बा
बबुआनी
अपना जवार के‘ !
फेर का !
खूब जमके देखावल गइल
बबुआनी आ
अगिला साले चले लगलन स
बलेसर काका के
एक जोड़ा हर
डेढ़ बिगहवा के छाती प ।
तब से बहुत कोशिश कइलन बाबूजी
बकिर काहे के !
डेढ़ बिगहवा जहां रहे, तहें रह गइल ।
सूचनार्थ निवेदन बा
कि बाबूजी अब नइखन एह दुनिया में
हमनी के कुल्ह भाई बड़ले बानी जा
एही दुनिया में
आ साँच कहीं त नाहियो बानी जा ।
भरपूर कोशिश हो रहल बा
लइकन के नीमन पढ़ाई करावे के
नाम प
पकवा इनार प के
डेढ़ बिगहवा से जान छोड़ावे के ।