“पागल”/ उदय शंकर प्रसाद
दरद के आग बा ओके दिल में,
रोये ला दिन रात
देख देख के लोग कहेला,
पागल जाता बडबडात
रहे उ सिधा साधा,
माने सब बात
लूट लेलक दुनिया ओके,
कह के आपन जात
आज ना कवनो बेटा-बेटी,
नाही कवनो जमात
नाही पाकिट में एगो रोपया,
रहे कबो अफरात
रहे उ अन्याय के विरोधी,
हर दम कइलक इंसाफ
नाही कबो केहू से डरे
उ मुंह पे करें बात
इ चिज़ ना दुनिया के भाइल,
देलक अइसन मार
चोट ओके अइसन लागल,
घुमेला पगलात ।