फन कढ़ले पुरवइया / कुमार विरल
फन कढ़ले पुरवइया डोले फागुन साँप भइल।
छनके लागल प्रान कि उलटा साँस भइल।।
गाँव-नगरिया बाग-बगइचा सगरो लहर समाइल,
ओठवा से मधुआ रस टपके भितरी जहर घोराइल,
सरधा के कोमल पतइन के हियरा काँप गइल। फन….
फूलन के बेमार देख के भँवरा भिनके लागल
तितिकी लेसलस तितिली के तब लुत्ती लेखा लागल,
दउरत-दउरत चाँद गगन में साँचो हाँफ गइल। फन….
सेमर के ललमुनिया चिरई मूं-मूं टपके लागल,
लप्-लप, लप्-लप् जीभ निकालत टूसा लपके लागल,
कुँहुँके लागल दिशा-दिशा अब सुर में टांस गइल। फन….
सँउसे सपना के मड़ई अब सम्मत में बिटोराइल
होलिका हँसि के होली गावे पहलाद के नॉव बुताइल
साँच जरावल जाता सगरो असली नॉच भइल। फन….
लाल भभूका चेहरा चमके बीखे अगिया मातल
लपेटाइल नागिन के बहियाँ, देहिया अँइठे लागल
रतिया में भकुआइल जिनिगी गर के फांस भइल। फन….
अइसन असर देखवलस फागुन लागल सभे चिलाए
इज्जत के सऊदा बजार में लागल खड़े बिकाए,
बनि के राजा ई बसंत सभनी के नाश गइल। फन…..