फेर काँहे सुनेनी हम तोहार बतिया/ राजीव उपाध्याय
उठि सूती पूछे मन, एगो हमसे बतिया
काहे खाती दिन बावे, काँहे खाती रतिया॥
रोज भिंसहरे काँहे, किरिन सूरुजवा
अउरी अन्हियारा, काँहे रोजे-रोजे रतिया॥
काँहे लोग मिलेला, अउरी जाला कहवाँ
फेर गीतिया सुनावेला, हमके दिन-रतिया॥
इहे साँच बावे कि, हम नाही केहू हवीं
फेर काँहे सुनेनी, हम तोहार बतिया॥