बसन्त फागुन / अशोक द्विवेदी

Image

बसन्त फागुन / अशोक द्विवेदी

धुन से सुनगुन मिलल बा भँवरन के
रंग सातों खिलल तितलियन के
लौट आइल चहक, चिरइयन के!

फिर बगइचन के मन, मोजरियाइल
अउर फसलन के देह गदराइल
बन हँसल नदिया के कछार हँसल
दिन तनी, अउर तनी उजराइल
कुनमुनाइल मिजाज मौसम के
दिन फिरल खेत केम खरिहानन के!

मन के गुदरा दे, ऊ नजर लउकल
या नया साल के असर लउकल
जइसे उभरल पियास अँखियन में
वइसे मुस्कान ऊ रसगर लउकल
ओने आइलबसन्त बन ठन के
एने फागुन खनन खनन खनके!

उनसे का बइठि के बतियाइबि हम
पहिले रूसब आ फिर मनाइबि हम
रात के पहिला पहर अइहे जब,
कुछ ना बोलब, महटियाइबि हम
आजु नन्हको चएन से सूति गइल
नीन आइल उड़त निनर बन के!

रंग सातों खिलल तितलियन के
लौट आइल चहक, चिरइयन के!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

बसन्त फागुन / अशोक द्विवेदी - भोजपुरी मंथन