बाति मानऽ सुगनवा – रमाशंकर वर्मा ‘मनहर’
जनि कर एतना गुमान हो, बाति मानऽ सुगनवा॥
बहुते घमण्डी लोग पल में बिलाइल
तू कवनी बल पर बाड़ऽ उतराइल
चलेलऽ हो ए उतान हो, बाति मानऽ सुगनवा॥
अन-धन सगरे ई महलऽ अँटारी
गम-गम गमके कामदेव के बारी
हो जाई एक दिन बीरान हो, बाति मानऽ सुगनवा॥
धन-बल के पा के तू हो गइल आन्हर
समझेलऽ सभके मदारी के बानर
ले लेलऽ सभसे भिड़ान हो, बाति मानऽ सुगनवा॥
केहू के इज्जत प्रतिष्ठा ना जनलऽ
हीत-मीत सभके एके लउरी हँकल
खुश होलऽ कऽ के अपमान हो, बाति मानऽ सुगनवा॥
के तोहसे खुश बाटे तू ही बतावऽ
नजरी से रंगीन चश्मा हटावऽ
ताकत के लागी अनुमान हो, बाति मानऽ सुगनवा॥
अबो से आपन रहनिया बनावऽ
नेह ले दियनव से नफरत भगावऽ
एही मे बाटे कल्यान हो, बाति मानऽ सुगनवा॥