बुद्धि के बढ़ती/ धरीक्षण मिश्र

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बुद्धि के बढ़ती/ धरीक्षण मिश्र

दोसरा के घर जरा के हाथ के सेंकले न बा ।
के आन का शुभ कीर्ति पर कीचड़ कबें फेंकले न बा॥

कहें हीरा चन्द ओझा चन्द कवि पृथिराज का –
दरबार में रहले कहीं इतिहास में लिखले न बा।

सन और सम्बत झूठ बा घटना सजी बेमेल बा
साँच कवनों बात रासों में कहीं बटले न बा।

का साँच बा का झूठ बा ई के इहाँ निर्णय करो
जब कि ओ पृथिराज के दरबार केहु देखले न बा।

एक बात जरूर बा हम कहबि ढोल बजाइ के
आजु ले ओझा कहीं केहु साँच कुछ भखले न बा।

आचार्य केशव दास पर बड़थ्वाल जी बानीं भिड़ल
मानों इहाँ खातिर कहीं मजमून कुछ अँटले न बा।

शुक्ल जी लिखनीं कि केशव का रहे ना कवि हृदय
जे जौन चाहो कहो तवने मुँह केहू छेंकले न बा।

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बुद्धि के बढ़ती/ धरीक्षण मिश्र - भोजपुरी मंथन