भारी भरम बा – देवेन्द्र कुमार राय
आगे जाईं कि पिछे लखात नइखे,
चुपे रहीं कि बोली बुझात नइखे।
जमते जमतुआ जुगजितना भइल,
हमरा जोडी़ के केहू भेंटात नइखे।
जे बइठल बा उहे घवाहिल भइल,
चोट लगलो प हमरा दुखात नइखे।
डेग जसहीं बढ़ाईंं थथम जाअइला,
राय केहू के चेहरा सोहात नइखे।
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