भोर / बच्चन पाठक ‘सलिल’
दक्खिन से आइल ई हउवा कॅुवरकी
गत्तर-गत्तर गुदरा जाले ;
लहर उढे झीलवा में जइसे
नयकी धियवा अगरा जाले।
कुंजन के लिलरा पर शबनम के बिंदिया
देखि-देखि कोइलरि चिहाइ ;
उगल किरिनिया पहाड़ी पर पहुँचल,
सोना के आँचर फहराइ।
कइसे वताईं कतना उठल बा,
रूप के समुन्दर हिलोर ?
डतरल बा सीखे सरग ई एहिजा,
कि आइल पहाड़िन पर भोर ?