माटी क बरतन / चंद्रदेव यादव

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माटी क बरतन / चंद्रदेव यादव

माटी अद्भुत चीज ह
एसे बनेला घर
एसे बनेला चूल्हा
चूल्हा पर पहिले
मटिये के बरतन में
बनत रहल खाना,
माटी क परई, माटी क सकोरा
आउर मटिये थरिया में खात रहैं लोग l
माटी अनमोल ह
सरीरो बनल ह मटिये से
ओइसे कउनो आकार में होय माटी
एक न एक दिन
हो जाले पहिले जइसन l

अपने जरूरत के हिसाब से
अदमी बनवलैं माटी क बरतन
छोट से छोट अ बड़ से बड़हर
देखीं न
दीया से बड़ ढकनी
ढकनी से बड़ परई
दीया जइसने रहल मलसी
रखे बदे तेल आउर चटनी
माटी क थरिया बहुत पहिले
गायब हो गइल जीवन से
हाँ, अथरी अ थार अबौं बनेलीं
जेमे दूध क कारोबारी
जमावेलं दही
रखेलं मलाई,
अथरी जइसने रहल कोही
बाकी ऊ छिछिल ना, रहल गहिर
कोही से बड़ा बनत रहल कोहा
रखे बदे पानी
कसोरी, जोड़ुवा अ मलुई
एक्कै चीज ह
जेम्मे एक ओर रखाय तेल
अ दुसरी ओर बुकवा
लइकन के मीसै-माड़ै बदे l

पहिले बनत रहलीं घरिया
रखे बदे थोड़-बहुत तेल-तासन
पढ़े वाला छोट लइका
घरिया में घोर के दुद्धी
पटरी पर लिखें बरनमाला
गिनती आउर पहाड़ा l
गोधना के दिन
कच्ची घरिया में डाल के शीरा
चिन्नी क घरिया बनावें हलवाई,
डेबरियो रहल माटी क
पुरवा-भरुका अजुओ बनेला
कई अकार क
कतों कतों बड़हर बनेला पुरवा
जल चढ़ावे बदे देवतन के l

गोल बरतन में
घरिया से बड़ रहल मेटी
मेटी से बड़ा मेटा
सरमेट्टै में एनके कहैं लोग
हँड़िया-पतुकी,
कबों कबों बने टोंटीदार मेटी
कार-परोजन में
पानी पियावे बदे l
हाँड़ी रहल, नेवहँड़ रहलीं कई तरह क
जतरा में अहरा पर खयका बनावें लोग
नेवहँड़ में,
दुधहँड़ भ नदियो रहलीं
कई साइज क
अँउटावे बदे दूध
जमावे बदे दही l
ठिल्ली-गगरी रहलीं छोट-बड़
ठिल्लिये जइसन बनेला कलसा
देबी-देवतन के पूजा बदे
सादी-बियाह में
मंड़वा में अजुओ रखल जाला कलसा l
सुराही गाँव में ना, सहर में रहल प्रचलित
जइसे गाँव में ना
सहर में प्रचलित ह गमला l
जहाँ इफरात हवे माटी
उहाँ गमला में भर के माटी
के लगाई फूल-पौधा?
अहिरन में करहा के पूजा बदे
बनेलीं चेरुई
खीर पकावे खातिर l
कलसा अ गगरी से बड़ा
रहल कमोरी
एसे बड़हर रहल ठिल्ला
जेम्में रखें लोग अनाज-पानी
गवने में एही में दिआय
लेंड़ुआ-ढूँढ़ी, खाझा-बतासा l

सबसे बड़हर बरतन में रहलैं
कुंडा आउर हउदा
रखै बदे राब
अलग-अलग नाप क
दुमनिहाँ से लेके नौमनिहाँ तक,
अब एनकर रेवाजै उठ गइल
बाकी अबहीं कतों-कतों देखाय जालीं
माटी क हउदी
जेम्में कोयर खियावैं लोग
जनावरन के,
जुग बदलतै बनत हईं अब
सिलमिट क हउदी l

पहिले ना रहल बार्बी डॉल
प्लास्टिक क बिबियो बहुत बाद में बनलीं
लइकन के खेलै बदे,
पहिले बनत रहलैं खेलौना माटी क
हाथी ह, घोड़ा ह
घंटी ह, जाँता ह
राजा-रानी, सिपाही-मजूर
सुग्गा का लाल-लाल ठोर
लइका के बझावत लइकोर
गाड़ी-मोटर
आउर पता नहीं का का!
आज त एक से बढ़ के एक
खेलौना मिलत हवें बजार में
पिस्तौलो बंदूक मिलत ह
लइकन वाली
जेसे लइका बचपनै में
पढ़त हवें पाठ हिंसा क l

मटिये क चिलम
गंजही अ तमाखू वाली अलग अलग
कोंहारन क चाको रहल माटी क
थपकी मटिये क बनावें कोंहार
गढ़े बदे थपुआ
नरिया गढ़ाय माटी क
अलग तरह से l

माटी से सुरू कइ के आपन जतरा
कहाँ से कहाँ आ गइल ह आदमी
माटी के करीब रहे वाला मानुस
धीरे-धीरे होत जात ह माटी से दूर,
बिकास के हर पड़ाव में
छूटत गइल ह कुछ न कुछ
पता नहीं माटी से दूर
कब ले रह पाई अदमी!

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माटी क बरतन / चंद्रदेव यादव – भोजपुरी मंथन