लोक सुदर्शन संधान/  राधा मोहन राधेश

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लोक सुदर्शन संधान/  राधा मोहन राधेश

भोर भइल बापू सपना के, भागल भूत अन्हार
सूतल सुगना ताके लागल, फड़कलपाँख पुरान ।
पिजड़ा के पीड़ाइल चिरई, कबहुं सुछंद उड़ जाले
बंदी देहिया तपल साधक के बान्हल ना मन माने,
चित्त चेतना हिया-राह के सभकर भीतर के जान
सूतल सुगना ताके लागल, फड़कल पाँख पुरान ।
समाज क्रांति के बात बता के बापू सरग सिधरलन
सुराज रछेया हित लोक रचना के सीख नाया सिखवलन,
राज – सत्ता के मोह जाल में भटके ना लोक सुराज
सूतल सुगना ताके लागल, फड़ कल पाँख पुरान ।
लोक राज हित, लोक सुराजी देश हित के ताकल
मनके गुढ़िते आग हिया से, एकजूट सभ लागल,
नाया – पुरान अंगुरी पर नाचल, लोक सुदर्शन संधान-
सूतल सुगना ताके लागल, फड़कल पाँख पुरान ।

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लोक सुदर्शन संधान/ राधा मोहन राधेश - भोजपुरी मंथन