विनाश के कगार पर/  राधा मोहन राधेश

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विनाश के कगार पर/  राधा मोहन राधेश

देश बा पहुंच गइल विनाश के कगार पर,
विवेक बा मरा गइल संहार के दुआर पर,
खोदके, खरोंचके, काल के जगा रहल
फण उठाके बिख-नाग देश के नचा रहल,
काल के मुहांन पर मदांध आँख बन्द आज
युग – विकास रुक चलल बिहान के दुआर पर ।
जाति-पांति, वर्गवाद लीडरी जमा रहल
बिका रहल ईमान आज नोट गीत गारहल,
नेक – नेति छूट के कुनेति के सवाल बा,
देश बा लुटा रहल जाति के गोहार पर ।
लक्ष्मी के लाज मान लक्ष्मी घटा रहल,
नवीन राहसे भटक जवान-यश मिटा रहल,
भोग वो विलास पर आज के गुमान बा
खिलखिलात रात बा अंजोर के दुआर पर ।
कुनीति लट-पाट वो पाखंड पाप बढ़गइल
अनर्थ, हीन – कर्म से नीति बा धोआ गइल,
ज्वाल के पुहांन आज, देश के सुराज बा
कदम उठल कंस के, ध्वंस के विचार पर ।
देश बा पहुंच गइल विनाश के कगार पर ॥

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विनाश के कगार पर/ राधा मोहन राधेश - भोजपुरी मंथन