शब्द के कथा – प्रिंस रितुराज दुबे

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शब्द के कथा – प्रिंस रितुराज दुबे

शब्द के चलऽ कथा सुने आ बुझल जव केतन बा बल
शब्दे जिनगी के माने हऽ, शब्दे ह जिनगी कऽ ज्ञान
शब्दे से ह आत्मा, शब्दे ह परमधाम
शब्दे से बुझगर बुझाल, शब्द से बुझाए अनुशासन
शब्द से मानुस के आचरण बुझाला, शब्दे से अनाचार
शब्दे से बनेला पिरितिया जईसन नेक नाता
शब्दे से मिलेला ज्ञान , शब्द से धरम बुझाला
शब्दे से बुझाए अधर्म, शब्द से मिले सरग
शब्दे से नरक

शब्दे मेल जोल से बने कबिता, शब्दे से संगीत
शब्दे से होखे बियाह, शब्द से बरबादी
शब्द से अत्याचार बढ़ेला, शब्द से बुझाए बुरबक
शब्दे से मुदई बनेला, शब्द से मित
शब्दे से समुन्द्र जस गहिराई बुझाए
शब्द से आकाश के जस उचाई
शब्द के कवनो अंत नईखे, शब्दे बा अनंत
शब्दे से ख़ुशी मिले, शब्द से होला दुःख मन
शब्द जस हवा चलेला, शब्द जस अगिन
शब्दे से समाज बनेला, शब्द से देश दुनिया
शब्दे निकले बोली, बोली लिपि कहाए भाषा
शब्दे से घर गिरहती बनेला, शब्द से परिवार
शब्दे से कलम के मिले ज्ञान
शब्दे से छुड़ी जस अज्ञान
शब्दे से फुल मिले, शब्दे से काट
शब्द शब्द से फल मिले तऽ शब्द से करईला
शब्दे से पुल्गी भेटाए शब्दे से शोर
शब्द से पूत कहाए, शब्द से कपूत
शब्दे से माई जस नाता, शब्द से मेहरी
शब्दे से सरकार बनेला, शब्दे केहू बईठे बिपक्ष
शब्दे कऽ सोच से चिरई के हवसला बुझाए
शब्दे से समुन्द्र बिच मछरी
शब्दे से दइब भेटाए, शब्द से राक्षस
शबद के बा केतन रुप
इहे ब जाने आ बचे के काम

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शब्द के कथा – प्रिंस रितुराज दुबे – भोजपुरी मंथन