सईंया सूतल होइहे जा के बथानी पर/ दुर्गा चरण पाण्डेय

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सईंया सूतल होइहे जा के बथानी पर/ दुर्गा चरण पाण्डेय

सईंया सूतल होइहे जा के बथानी पर
मकई में मचानी पर ना….

कइले होइहे सानी-पानी, कोड़ले होइहे कोन-कान
सांझे चौराहा जा के, खइले होइहे मीठा पान.
दिनभर रहल होइहे चीनी अउरी पानी पर
मकई में मचानी पर ना …..

झिहिर झिहर सखी बहे पुरवइया,
रात अन्हरिया गोहरावत होइहें मईया,
ठिठुरल बइठल होइहे गंजी मर्दानी पर
मकई में मचानी पर ना….

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सईंया सूतल होइहे जा के बथानी पर/ दुर्गा चरण पाण्डेय – भोजपुरी मंथन