सगे भाई की तरे/ रामबहादुर ‘अधीर पिंडवी’ 

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सगे भाई की तरे/ रामबहादुर ‘अधीर पिंडवी’ 

सबकी दुख सुख में रहीं सगे भाई की तरे ।
तबो अरिया चलावे लोग कसाई की तरे ।।

धरती की लोगवा के सुख पहुँचाई ।
देके दवाई सबके रोगवा भगाई ।।
केतना स्वारथी बा लोगवा बताई के तरे ।।….

अमवा कहेला आपन रोइ के विपतिया ।
महुआ के नींद नाहीं आवे दिन रतिया । ।
अब रोवेले जमुनिया लुगाई की तरे ।।…….

निमिया कहेले हम हईं दुख हरनी ।
फायदा उठा के लोग भूलि जाला करनी ।।
हम बेनिया डोलाई रोज माई की तरे ।।……

छहियां में हमरी लोगवा जुड़ाला ।
फल खाके सब केहू केतना अघाला ।।
बंशी चैन के बजावे लोग कन्हाई की तरे ।।…..

एही तरे धरती के पेड़ जो कटाई ।
बची ना केहू विपत्ति सब पर आई ।
लोगवा समझे ना बाति समुझाईं के तरे ।।….

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