सपना/ आचार्य महेंद्र शास्त्री
रात सपना में देखनी उद्धार भइल रे ।
गली में गलीज नैखे साफ सभ ओर घर दुआर भइल रे ।
गन्दगी से रोग होखे उहे बनल खादर बेड़ापार भइल रे ।
अन्न बस्तर दूध दही फल तरकारी भरमार भइल रे ।
सहरो के लोगवा देहाते चाहे लागल ऐसन कार भइल रे ।