सामयिक रचना/ यमुना तिवारी ‘व्यथित’
संसद पर कइलस
जवन आतंकी चढ़ाई,
ओकरो के देशवा में
फाँसी ना दिआई ।
सुरसा के मुँह अस
बढ़ता महंगाई,
नंगा निचोड़ी का
का ऊ नहाई ?
सामाजिक समरसता के
देके दुहाई,
आरक्षन के नाम पर
होत बा लड़ाई ।
पेट्रोल डीजल महंगा भइले
महंगा भइल ढोआई,
सब्जी-भाव आकास छूए
का कोई खाई ?