सास पतोहि के झगड़ा/ दीपक तिवारी
सास पतोहि के घर के झगड़ा कबो ना ओराई,
भूल के केहू कबो केहु के ना करिलो बड़ाई।
घर घर के विथा कहानी बहुते दुःख दाई बा,
केकरा के समझावल जा चुप रहला में भलाई बा।
बात बात में एक दिना सास दिहली गरियाई,
नया नोचर बानी पतोहि कहली खैर मनाई।
देती तोहार जवाब बुझँल हम नया ढंग से,
तूहो का बुझँतु भेंट भइल बा कवनो दबंग से।
होई इज्जत आपन बचावें के त दुरे रहिहँ हम से,
आज बोल दिहलु फेर ना बोलीहँ गिरे लागी धम से।
तू हमरा के डेरवावत बाड़ू अइले भइल चार दिन,
आवते रहन देखाई दिहलु हो जइबू कवडी़ के तीन।
लूर सहुर सिखलु नाही खाली जानsतारू लड़े के,
बाप माई बतलवले ना कइसे बोलल जाला बड़े के।
बाप माई के दुरे राँख उनुकर काहे लेलु हँ नाँव,
अतना तोहार हिम्मत तू चली गइलू हमरा गाँव।
कहा कहि होते होते दुनु जानी में गइल बजड,
लाज शरम तनिको ना का छोट होखस का बड़।
आइल हल्ला सुनीं के सभें फरका फरका हटावल,
फरियावल लो झगड़ा केहू तरे गइल सलटावल।
सास किन्चित कहि मिले नींक बहू करे वाली सेवा,
समझे एक दूसरा के आपन ना दीपक करे भेवा।