हरसिंगार / बैद्यनाथ पाण्डेय ‘कोमल’
हरसिंगार के सिंगार में जगल बहार बा।
डार-डार पात-पात में जगल दुलार बा।
देख के सिंगार सब
बिहँस रहल अकाश बा।
हाव-भाव देख के
जिया भरल हुलास बा।
सिहर-सिहर सिहा रहल चिहा रहल बयार बा।
झूमि-झूमि डाल-डाल
मौन गीत गा रहल।
सपना के बात आज
साँचि बनि के आ रहल।
कल्पना अकार-हीन बन गइल सकार बा।
भाव लाख-लाख सुनर
कविता के जाग गइल।
फूलन के रंग संग
आज झूम राग गइल।
प्यार-धार हार एह पर सब कुछ निसार बा।
हरसिंगार के सिंगार में जगल बहार बा।