मन के मुनरवा/ निर्भय नीर

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मन के मुनरवा/ निर्भय नीर

हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।
झटके में हियरा दुखा गइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।

जिनिगी के पोसल-पालल, सउँसी सपनवा।
टिसुना के बगिया में, फरेला फरेनवा।
बिना फल देले भहरा गइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

अबगे सजत रहे ,आस में जिनिगीया।
उठतऽ खिलतऽ रहे, मन के पिरितिया ।।
ताले विधि लिखंत, मेड़रा गइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

विधि के लिखंत नाहीं, जुगति से टरेला।
करम टांकल रेखा, कबहूँ ना हटेला।।
सबूरी जोगावत मन, थीरा गइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

पइसे तऽ जग के,चलावे जग रीतिया।
पइसे तऽ जग में, जोगावे ले पिरितिया।।

जिनिगी के झांझर इहे, बना भइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

जिनिगी बेहाल बड़ा, तड़पे परनवा।
साँझे सवेरे देखे, उनके सपनवा।।
खोजी-खाजी, थाकी -हारी, बउरा गइले हो।।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

लोग आ समाज खातिर, जिनिगी बितवनी।
विषम समइया में,कुठार घात सहनी।।
हिया घाव निर्भय के, दूना भइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

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मन के मुनरवा/ निर्भय नीर - भोजपुरी मंथन