रजनीति/ दिनेश पाण्डेय
झूठ आँखि के सोझ जे, साँचा जवन अदीख।
अखनी के रजनीति में, दरसन के ई सीख।
वादा कइके छाड़ि दऽ, मान न नीति अनीति।
ना बैरी हित केहुओ, एखनि के रजनीति।
धोती खोलऽ तू हमर, अवरी हमूँ तहार।
एही गोटी दुइजना, खेलीं जुगवासार।
ठगवा के चेला चले, उहे पुरनकी चाल।
परि कंगन के लोभ में, पँड़या भइल हलाल।