अँखिया से बहे झर झर लोर/ विमल कुमार

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अँखिया से बहे झर झर लोर/ विमल कुमार

छोट फुदगुदी खेले अँतरा,
का जाने का होखे खतरा,
बाझ नोचलस ओकर ठोर
अँखिया से……..

पाँखि ध फेरु बाहर खिचलस,
बहसी बन के फिर तन चिखलस,
गाँव शहर में मचल पुरा शोर
अँखिया से……….

देह नोच के कइलसि गुदरी,
खूने के धार पसरल सगरी,
ले आइल एगो दुखद भोर
अँखिया से………..

कुकरमी कई कुकरम भागल,
सुतल मानवता कहाँ जागल,
तड़पे हिया सिहरे तन मोर
अँखिया से……….

मनई जिम्मे सभ गिरल करम,
गेयानी होलन टूटल भरम,
अन्हेर मचल बा चारो ओर
अँखिया से………..

चिरई परि गइल चलल न जोर,
टुकी टुकी कइलस हाथ गोर,
टूट गइल तब साँस के डोर
अँखिया से………

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अँखिया से बहे झर झर लोर/ विमल कुमार - भोजपुरी मंथन