लाली रे चुनरिया में/ सुरेन्द्र प्रसाद गिरि
लाली रे चुनरिया में अइली दुलहिनिया
निरखेला गॅउवा के लोग हो ——- ।। टेक ॥।
बिटिया के भइले बिदाई,
नइहर छुटल बाबू – माई –
कइसे सहिहे बियोग हो
लाली रे चुनरिया में अइली दुलहिनिया
निरखेला गउवा के लोग हो—-
झर झर झरत होईहैं,
अमवा के पत्तिया
बिलखत होईहें रामा,
बालापन के सखिया
लोरवा से भिजल होई भइया के चदरिया,
मईया के धधकत कोख हो
लाली रे चुनरिया में अइली दुलहिनिया
निरखेला गउवा के लोग हो—–
छूटी गइले चकवा – झिझिया,
दउरी-मउनिया हो,
कइसे खेलइहें रामा
भउजी के बबुनिया हो
बटिया जोहत होइहें ललकी जे गईया
बिधना के लिखल ई संजोग हो
लाली रे चुनरिया में अइली दुलहिनिया,
निरखेला गॅउवा के लोग हो ————-|