पोर-पोर घाव हो गइल/ रामेश्वर प्रसाद सिन्हा ‘पीयूष’
पोर पोर घाव हो गइल ।
दर्द के पड़ाव हो गइल ।
माथा पर बइठल बा अनघा ले दन
घर-घर में बाटे अब मौत के चलन
जिन्दगी छलाव हो गइल ।
पोर पोर घाव हो गइल ।
मसकिल बा काटल अब एक-एक पल
निकलल ना अबहीं ले रोटी के हल
आस बा कसाव हो गइल ।
पोर पोर घाव हो गइल ।
सतवाँ असमाने बा मौसम के मन
बाँटत अन्हरिया बा, भोर के किरन
भूख के दबाव हो गइल ।
पोर पोर घाव हो गइल ।