डबाडबा गई है तारों-भरी शरद से पहले की यह अँधेरी नम रात । उतर रही है नींद सपनों…
तीज-व्रत रखतीं, धान-पिसान करती थींग़रीब की बीवीगाँव भर की भाभी होती थींकैथरकला की औरतें गाली-मार ख़ून पीकर सहती…