अन्हर लट्ठ / कुंज बिहारी ‘कुंजन’

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अन्हर लट्ठ / कुंज बिहारी ‘कुंजन’

अपना आगे सभे लगावे अन्हका के बैमान॥
अपना जाने सभे दूध के धोवल वा पुरधान॥
जेही के देखी से बस, अन्हके के गरियाबत बा।
अन्हके गलती लउकत बाट भाषाण उडि़यावत बा॥
तब के लेता घूस, देत बा के सै सै के नोट ?
दूनो धर्मराज में के बड़ बादे के बा छोट ?
के धरात बा डब्लू टी में, डाका राहजनी में ?
कवना आसमान के अदमी अतरल बा हमनी में ?
कोट कचहरी में लागल बा हइ भेंडि़या धसान,
का ईमानदारी के बाटे, हइहे कुल्ह पहचान ?
धन बा करिया धंधा के, बा टेरीकाट के ठाट,
कविता लेकिन मार्क सिस्ट बा अजब विखैला काट॥
ऊ भाषण करिहे, शोषण पर जइसे बिखधर छुरी।
बाकी बे झगरा के, ना रेक्सो के देस मजूरी॥
के नइखे शासन के ऊपर पीटत टीन कनस्टर ?
के नइखे चाहत कि हमरो छवड़ा बनो मनिस्टर ?
जे गरियावत बा अफसर के, मुँह में ला ला चोंगा
सेहू तिकड़म चलले बा, कि कहिया बनीं दरोगा॥
नोचा नोची टांग बझउअल, कुरसी अस कुकुहार।
ई कुल्ह से खाली नइखे सुरसतियो के दरबार
कुजन बस कबिते में बोल लन हिरदय के बात
ना त दाव पेंच में इन्हिको कम नखहिन औकात॥

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अन्हर लट्ठ / कुंज बिहारी ‘कुंजन’ - भोजपुरी मंथन