जीव के हत्या/ तारकेश्वर राय ‘तारक’

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जीव के हत्या/ तारकेश्वर राय ‘तारक’

हमरा गाँव के दखिन सिवान के महंगू अहीर के डेरा के २० लठ्ठा दूर एगो बाबाजी लोग के गाँव बा महुवारी । ओह गाँव में बड़ा धार्मिक बिचार के लोग रहेला । जीव हत्या के जघन्य पाप समझेला ई गाँव । आजुले कवनो जीव हत्या भइल होइ कोई के इयाद नइखे । काहें की सउँसे गाँव जीव के आपन घर परिवार के सवांग नियर मानत रहे । 

एक दिन फजीरे बजरंगी पांडे के छोटका नाती महंगू के आवाज सुनाइल “धउरजा हो एगो आदमी बरम बाबा तर हरीना मार देले बा” 

इ सुनी के गाँव के कुल्हिये नौछेटीहा हाँथ में गोन्जी ले के बरम बाबा की और दौड़ पड़लन । जा के देखलन की, एगो आदमी के गाँव के कुल्हिये लइका मिलके पकड़ले बाण स । सामने मुवल हरीना जमीन पर पड़ल बा । इ देख के सभकर खून खौल गइल । जेकरा हाँथ जवन लागल ओहिसे ओह आदमी के धुनें लागल । उ हाँथ जोड़ी के सबसे रहम के भीख माँगत सुनाइल आ जान बख्स देवे के गोहर भी लगावत सुनाइल । 

लेकिंग भीड़ कहाँ सुने वाली रहे। हं , बिच बिच में भीड़ में से इ आवाज जरूर सुनाइल “आजु तक ले एह गाँव में जीव हत्या ना भइल रहल ह, जीव हत्या कइके तू हमनीके गाँव के परम्परा के तोड़ी देले बाले ।” 

भीड़ उकसवलस “छोड़ला के काम नइखे एके सजा देहल जरूरी बा, इ एगो जीव के हत्यारा ह, इ हमनीके गाँव के पुरखन से चलल आ रहल परम्परा के तोडले बा ” 

भीड़ के आगे एगो निहथ्था आदमी कबले बाँचीत, तड़प तड़प के प्राण निकल गइल । 

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जीव के हत्या/ तारकेश्वर राय ‘तारक’ - भोजपुरी मंथन