दहेज/ तारकेश्वर राय
बाप देखीं बेटा के, बोली लगवले बा |
देवे वाला ख़ुशी से, गर्दन झुकवले बा ||
मोल भाव होता, देखीं सपना के ||
शान से बेचता, केहू अपना के ||
अरमान के होखता, खुला ब्यापार |
नइखे पुछात, लईकी के बिचार ||
दहेज के भूख त, बढते जात बा ये भाई |
पइसा के मोल से, देखीं गुंजी शहनाई ||
दहेज मांगल त, अब बन गईल बा शान |
पाई पाई जोर के, पूरा कराता अरमान ||
कुरीति के निचे, आत्म सम्मान बा दबाइल |
दे के दहेज़ , आग में घिवे डलाइल ||
बीमारी ह समाज के , कानून से ना ओराई |
ना रोकाई त दिन दिन बढ़ी, एक दिन बौराई ||
दहेज़ के बदले, जहां होता लईकी के बिदाई |
शामिल न होखे केहू, जेमा दहेजलिआइ बा दिआइ ||