दू दिन जिन्दगानी/ डॉ॰ भगवान सिंह ‘भास्कर’
उड़ालs मौज मस्ती दू दिन जिन्दगानी ।
हँसत खेलत में बाबू बचपन गुजरलऽ
माई-बाप के कान्ह पर चढ़ि के नचलऽ ।
ना कवनो सोच फिकिर ना रहे हरानी
उड़ालs मौज मस्ती दू दिन जिन्दगानी ।।
जब आइल जवानी गुलछर्रा उड़वलऽ
बम्बई दिल्ली कलकत्ता तू घूमलऽ ।
तोहार मौज मस्ती केतना बखानीं
उes मौज मस्ती दू दिन जिन्दगानी ।।
माई के गरभिया में नवमास रहलऽ
भगवान के दिन-रात विनती तू कइलs
‘बाहर भजब नाहीं करब हम नादानी’
उड़ा मौज मस्ती दू दिन जिन्दगानी ।।
अइहें जमराज भइया सोटा लगइहें
मारि – मारि तोहरो खालरा ओदरिहें ।
मन परी बतिया नैना से ढरी पानी
उड़ाल मौज मस्ती दू दिन जिन्दगानी ।।
मन से ‘भास्कर’ करऽ परमेश्वर भजनवा
छोड़s मोह माया जग के जंजालवा
महिमा भगवान के इहाँ उहाँ रवानी
उड़ालs मौज मस्ती दू दिन जिन्दगानी ।।