कहवाँ गइल?/ निर्भय नीर
कहवाँ गइलऽ, मोरी मनवा रे ।।
एह करे खोजीं, ओह करे खोजीं,
कतहीं ना पाईं , तोरी संगवा रे।
कहवाँ गइल , मोरी मनवा रे।।१।।
रतिया सपनवा में, निनिया जे टूटल।
आँखि के कोरवा से, लोरवा जे छूटल।।
ढ़रकी भींजावे , मोरी गलवा रे ।
कहवाँ गइल , मोरी मनवा रे।।२।।
केकरा से कहीं, मन टोही लावे।
सभे अझुराइल, केहू कहाँ धावे।।
खोजि थाकि गइले , घर बनवा रे।
कहवाँ गइल , मोरी मनवा रे।।३।।
सुनि के वचन मूँह, लेले घूमाई।
ममता के बाँटि-जोखी, भइले पराई।।
बिलखी तड़पी, रोवे भवनवा रे।
कहवाँ गइल, मोरी मनवा रे।।४।।
हँसे केहू, डाटि देला, केहू उरकेटे।
हियरा समाइल टीस, तब तब उठे।।
छतिया में लागे , जइसे बनवा रे।
कहवाँ गइल, मोरी मनवा रे।।५।।
दुखवा भरल भाव, भीतरे जोगावे।
निर्भय बनल रहि, जिनिगी बचावे।।
मउवत झाँके, हर क्षणवा रे।
कहवाँ गइल मोरी मनवा रे।।६।।