भोजपुरी मंथन

चइत दुआरे ठाढ़ – दिनेश पाण्डेय

भोजपुरी मंथन

चइत दुआरे ठाढ़ – दिनेश पाण्डेय

फगुआ के अनवाध में, चइत दुआरे ठाढ़।
ललकी किरिन परात के, तकलसि घूघा काढ़।

मादक महुआ गंध में, डूबल बनी समूल।
हवा कटखनी बिन रहल, मउनी भरि-भरि फूल।

चइता के धुन अस चढ़ल, भइल असंभो बात।
लँवडा संग जटेसरो, नचले सारी रात।

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