बसन्ती बेयार/ शीतल प्रसाद दुबे
नइहरवा बसन्ती बेयार, ससुरवा हम ना जइबो ।
ससुरा में बाड़े खपड़ा मकनिया, दलनिया के ढहल किनार,
नइहर में सोभेला सुनर मकनिया, दुअरा पs पकवा इनार ।
ससुरवा हम…
ननदी के बोली, सासु से खटपट, होखेला रोज बेसुमार,
ननदी के ओरहन पS, सासु के ताड़ल, जइसे कुकुर के मिले दुतकार
संसुरवा हम..
ससुरा भेंटाला बोली कुबोली, नइहर में मीठे-मीठे बात ।
ससुरा में मिले मकेआ-मडुववा, नइहर में चाउर के भात ।
ससुरवा हम..
नइहर में मस्ती बा, घूमे के सस्ती बा, बोले के बात लछेदार,
पानी के पनघट पs, खेत में मुड़ारी पs घूमे के बाटे सुतार ।
ससुरवा हम…
बहे माई के गोदी में नेह के नदिया, कि बाबुजी अक्षय दुलार,
भइया के देखिके, जुड़ाय मोरा छतिया कि, जिनिगी में खुशिया – अपार ।
ससुरवा हम… _
फागुन महीना में पिया के सुरतिया, उठेला हिया हाहाकार,
देहिया में लेसलस विरह के अगिनिया, अब नइहर के देबो बिसार ।
ससुरवा जरूर जइबो ।
नइहरवा बसन्ती बेयार, ससुरवा हम ना जइबो ।